



82वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती के अवसर पर
सर्व धर्म सम्मेलन का आयोजन
धमतरी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, धमतरी के तत्वाधान में 82वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती के अवसर पर संांकरा स्थित ‘आत्म अनूभूति तपोवन‘ में सर्व धर्म सम्मेलन एवं 40 फिट उंचे शिवलिंग तथा द्वादश ज्योतिलिंग झांकी का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम मंे हरिशरण वैष्णव, भागवताचार्य, धमतरी, मो. अश्फाक अली हाशमी, समाजसेवी धमतरी, ज्ञानी सुरजीत सिंह, गुरूसिंग सभा धमतरी, डायमंड फिलिस, महासचिव सुंदरगंज मेनोनाइट चर्च, धमतरी एवं ब्रह्माकुमारी सरिता बहन, संचालिका ब्रह्माकुमारीज़ धमतरी सेवाकेन्द्र थे।
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी सरिता बहन ने 82वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती का आध्यात्मिक रहस्य ब
ताते हुए कहा कि त्रिमूर्ति शब्द का परमात्मा के तीन दिव्य कर्तव्य को स्पष्ट करता है। परमात्मा शिव ही सृष्टि के रचनाकार, पालनहार, एवं महाविनाश के माध्यम से महापरिर्वतन का दिव्य कर्तव्य ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के द्वारा कराते है। इसलिए उन्हे गाॅड (ळव्क्द्ध भी कहा जाता है। परमात्मा द्वारा रची गई सृष्टि में सम्पूर्ण सद्भावना थी इसलिए उसे स्वर्ग, पैराडाइस, जन्नत अथवा अल्लाह का बगीचा कहकर आज भी याद किया जाता है। उसकी बनाई दुनिया में पवित्रता, सुख, शांति, प्रेम, आनंद वह सबकुछ था जो मनुष्यात्मा की मूल आवश्कता है, किन्तु आज के मानव ने अपने इच्छाओ को ही अप
नी आत्मा की आवश्यकता मान लिया जिस कारण आज हर मानव दुख, अशांति, एवं विकारो से ग्रसित हो गया है। वर्तमान समय वही निराकार परमात्मा शिव अपने साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा विगत 82 वर्षो से विश्व परिर्वतन के कार्य हेतु धरती पर अवतरित होकर विश्व की सर्वआत्माओ को यह संदेश दे रहा हे कि अपने आत्मा के विकारो को जो कांटा बनकर हमे और दूसरो को दुख दे रहा है ऐसे विकारो रूपी कांटो को ईश्वर पर अर्पण कर उसके बदले में फूल जैसा जीवन प्राप्त करो परमात्मा के इसी कर्तव्य के कारण उसे बबूलनाथ कहकर उसकी पूजा की जाती है। इस शिवरात्री हम सभी स्वंय को एक पिता की संतान मानकर सर्व के प्रति सद्भावना अपने मन में रखने की प्रतिज्ञा करे। यही सच्ची शिवरात्री मनाना होगा।
इसी तरह हरिशरण वैष्णव, भागवताचार्य जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि धर्म अर्थात जो एक दूसरे को जोडे़़, जो आपस में जोडता है वह धर्म है। वेदव्यास जी ने परमात्मा को सत्य कहकर परिभाषित किया। चूंकि सत्य निराकार है हमने उसे साकार रूप देकर सत्य नारायण कह उसकी आराधना उपासना किया। कबीर जी ने सत्य कबीर कहा, सिख धर्म में सत् श्री अकाल कहा, एवं सत्नाम साक्षी कहा गया। पर हित से बडा कोई धर्म नही और परपीडा से बडा कोई अधर्म नही। हम सभी उस सत्य को पहचान सबसे धर्म के अनुसार आचरण रखे तो समाज में सच्ची सद्भावना सहज आ जाएगी।
मों. अश्फाक अली हाशमी, समाजसेवी ने कहा कि अल्लाह ने अच्छा बनना और सबसे अच्छा ताल्लुकात रखना सिखाया हमारे धर्म के बडो ने कभी भी उनका बुरा करने वाले या बुरा चाहने वालो के साथ भी सदा अच्छा व्यवहार किया तब वे बडे बने। हर धर्म का संदेश और उद्देश्य होता है आपसी भाईचारा एवं सद्भावना।
ज्ञानी सुरजीत सिंह जी ने गुरूगं्रथ के अनमोल बचन का पाठ कर गुरूनानक जी के द्वारा दिए गए सद्भा
वना के संदेश सबको सुनाया।
डायमंड फिलिस जी ने वर्तमान समय के भारत और 60 वर्ष पहले के भारत में अंतर बताते हुए कहा कि वर्तमान समय लोग सद्भावना की बात तो करते है लेकिन सद्भावना उनके वाणी, व्यवहार में कही नजर नही आती। सद्भावना हमारे मन के द्वार को खोलता है। यदि सारे ही धर्म अच्छे और समान है तो फिर ये तेरा धर्म ये मेरा धर्म यह बात कहां से आ गई। वर्तमान समय धर्म राजनितिज्ञो के हाथो में होने कारण उसका स्वरूप बिगड गया है जरूरत है धर्म को पुनः सत् आचरण करने वाले संतो को देने की। धर्म को बहुसंख्यक – अल्पसंख्यक की दृष्टि से न देखे। हम सब एक ही कुम्हार की, एक ही मिट्टी के अलग अलग बने बर्तन है। उन्होने प्रभु ईसा मसीह के संदेश का वाचन किया और दया, नम्रता के महत्व से जुडी बाते सबको बताई।
तत्पश्चात् 40 फीट उंचे शिवलिंग एवं द्वादश ज्योतिलिंग की झांकी का दीप प्रज्जवलन कर शुभारंभ किया गया तथा शिव ध्वज फहराया गया। झांकी 11 से 18 फरवरी अवलोकन के लिए रखी जाएगी।
इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ ब्रह्माकुमारी नवनीता बहन के स्वागत गीत से हुआ। कार्यक्रम का संचालन कामिनी कौशिक ने किया।